चरम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी का जीवन परिचय

पिता का नाम राजा सिद्धार्थ
माता का नाम रानी त्रिशला
भाई का नाम नन्दीवर्धन
बहन का नाम सुदर्शना
जन्म स्थल क्षत्रिय कुण्ड
जन्म देश पूर्व
लांछन सिंह
यक्ष मातंग (ब्रह्म शान्ति)
यक्षिणी सिद्धायिका
शरीर की ऊँचाई 7 हाथ
वर्ण स्वर्ण-पीला (कांचन)
च्यवन कल्याणक आश्विन सुदी 6
च्यवन नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी
च्यवन राशि कान्य (कन्या)
पूर्व भव नगरी अहिछत्रा
कौनसे देवलोक से च्यवन प्राणत
तीर्थंकर नाम कर्म का भव नंदन
पूर्व भव नाम नंदन
पूर्व भव गुरु पोट्टिलक
पूर्व भव स्वर्ग प्राणत देवलोक
भव संख्या 27 (सत्तावीस)
गर्भकाल स्थिति 9 माह साढे सात दिन
जन्म कल्याण चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (30 मार्च 599 ई.पू.)
बाल्यावस्था का नाम वर्धमान, वीर, ज्ञातपुत्र, महावीर
जन्म नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी
जन्म राशि कन्या
गण मानव
वंश इक्ष्वाकु
गोत्र काश्यप
योनि महिष
कुमार अवस्था 30 वर्ष
पत्नी का नाम यशोदा
पुत्री का नाम प्रियदर्शना
जंवाई का नाम जमाली
पिता की गति माहेन्द्र देवलोक
माता की गति माहेन्द्र देवलोक
दीक्षा नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी
दीक्षा राशि कन्या
दीक्षा नगरी क्षत्रिय कुण्ड
दीक्षा भूमि ज्ञातखण्ड वन
दीक्षा वृक्ष अशोक वृक्ष
दीक्षा दाता स्वयं
दीक्षा शिविका चन्द्रप्रभा
दीक्षा का समय मध्यान्ह (दोपहर)
दीक्षा के समय तप छट्ठ (बेला)
दीक्षा लेते ही ज्ञान चौथा मनः पर्यय
लोच पंच मुष्टि
दीक्षा के बाद पारणे का द्रव्य परमान्न-खीर
प्रथम पारणे की नगरी कोल्लाक
प्रथम आहार बहराने वाले बहुलद्विज
साधना अवधि साढे बारह वर्ष
प्रथम व अन्तिम उपसर्ग ग्वाले द्वारा
केवलज्ञान कल्याण वैशाख सुदी 10
केवलज्ञान नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी
केवलज्ञान राशि कन्या
केवलज्ञान नगरी जंम्तिका नगरी बाहर
केवलज्ञान भूमि ऋजुवालिका नदी का तट
केवलज्ञान के समय तप छट्ठ (बेला)
उत्कृष्ट तप छः माह
केवलज्ञान वृक्ष शाल वृक्ष
ज्ञान वृक्ष की ऊँचाई 21 धनुष
समवसरण की रचना 4 कोश (1 योजन)
प्रथम देशना का विषय यति धर्म, गृहस्थ धर्म, गणधर वाद
गणधर की संख्या 11 गणधर
प्रथम शिष्य इन्द्रभूति गौतम
प्रथम गणधर इन्द्रभूति
प्रथम शिष्या चन्दना (चन्दनबाला)
मुख्य भक्त राजा श्रेणिक
केवलज्ञानी सात सौ (700)
मनः पर्ययज्ञानी पाँच सौ (500)
अवधिज्ञानी तेरह सौ (1300)
चौदह पूर्व धारी तीन सौ (300)
वैक्रिय लब्धिधारी सात सौ (700)
साधु की संख्या चौदह हजार (14000)
साध्वी की संख्या छत्तीस हजार (36000)
वादी मुनि चौदह सौ (1400)
श्रावक की संख्या 1 लाख 59 हजार (159000)
श्राविका की संख्या 3 लाख 18 हजार (318000)
चारित्र पाँच (सामायिक, छझोपस्थापनिक, परिहार, विशुद्धि सूक्ष्म सम्पराय, यथाख्यात)
सामायिक चार (सम्यक्त्व, श्रुत, देशविरति, सर्वविरति)
प्रतिक्रमण पाँच (राइय, देवसिय, पक्खी, चौमासी, सम्वत्सर)
साढे बारह वर्ष में आहार ग्रहण दिन 349 दिन
तेरह अभिग्रह का पारणा कौशाम्बी में चन्दनबाला के हाथों
छद्मस्थकाल में तप 14 प्रकार के तप
निर्वाण कल्याणक कार्तिक कृष्ण अमावस्या
निर्वाण कल्याणक नक्षत्र